कलयुग की नारी 

कलयुग की नारी लिरिक्स
कलयुग की नारी लिरिक्स

Rap and Lyrics by - LUCKE
Music and Mix Mastered by -Ravindra
Hook composition-Ravindra 

कलयुग की नारी लिरिक्स

सुनो कहानी साथ मेरे तु
इस कलयुग की नारी की

दिखावे की इस दुनिया में
परवाह इसे दिखावे की
झूठी दुनिया में उलझी
असलियत से दूर गई।
आधुनिक दुनिया की नारी
संस्कृति ही भूल गई।
हे कलयुग की नारी
तुम कैसे इतना बदल गई
कैसे इतना बदल गई
कैसे इतना बदल गई

क्या हो रहा है आस पास
और कैसी दुनिया सारी है।
नशे पत्ते में लिप्त बैठी
कैसी आज की नारी है।।
आधुनिक दुनिया की
नारी सोचे सब पर भारी है।
पर असल में ये सोचे तो

इन्हें कई बार टूट फिर जाता है।
अपनों का रिश्ता छोड़ के
रिश्ता गैरों का क्यूँ भाता है।।
कुछ नारी है जो आजकल
छोटे वस्त्रों में आती है।
लोकप्रिय बनने को
वस्त्रो से अंग दिखाती है।।

अब ऐसी नारी होती है
जो मर्यादा ना रखती है।
पढ़ने लिखने के नाम पर
छल घरवालों से करती है।।
कर्तव्यों को जो भूल के बैठी
कुमार्ग पर जाती है।
कम उम्र की लड़कीयाँ
बचपन में इश्क़ लड़ाती है।।

संबंध बनाती कई बार
संस्कृति से भी दूर गई।
जो गहना होती स्त्री का
वो लाज शर्म भी भूल गई।।
भूल गई वो मर्यादा
जो एक स्त्री में होती है।
मात पिता को दुख देके
किसी ग़ैर के ख़ातिर रोती है।।

ये जाने ना पहचाने ना
इंसान के रंग रूप को।
प्रेम करती उनको
जिनको केवल तन की भूख हो।

मन से किसको प्रेम है
और तन की किसको आशा।
कौन करता है प्रेम इन्हें
और कौन करे छलावा।।
सही ग़लत में अंतर भी
अब नारी को है ज्ञात नहीं।
जैसे पहले होती थी
अब नारी में वो बात नहीं।।

नशे में डूबी रहने वाली
महख़ानो में रहती है।
दिखावे की इस दुनिया में
दिखावे में ही जीती है।।
संस्कृति से कोई काम नहीं
यें सोचे आज की नारी।
गर्व होता इनको
जैसे छोटे कपड़ों में आज़ादी।।

क्युँ बदल गया ये वक़्त
कैसे बदल गये लोग।
छोटे हुए कपड़े
या फिर छोटी हुई सोच।।

नये जमाने वाली माँ देती
बच्चों पर देती ध्यान नहीं।
अपराध को जो रोक सके
देती ऐसे संस्कार नहीं।।
ये ऐसी नारी है
जिसको परिवार की ही ना चिंता है।
अरे कैसी नारी है
जिसमे नारीत्व ही ना दिखता है।।

हाँ नारी तो वो जो होती थी
जो काल को भी मात दे।
अपने स्वामी के ख़ातिर
वो जो राजपाठ भी त्याग दे।।
दण्डवत प्रणाम है मेरा
उस विकराल सी नारी को।
खूब लड़ी मर्दानी
वो उस झाँसी वाली रानी को।।

वो उतरे जब मैदान में
तो खून की नादिया बहती थी।
और क्या ही हिम्मत होगी
उस रानी मैं जो ये कहती थी।।

के प्राण भले ही जाये
मेरे पर दामन पर ना दाग लगे।
मेरी देह की इच्छा रखते
जिनके हाथ मेरी ना राख लगे।।
वो रानी पद्मिनी थी
जिसने अग्नि में स्नान किया।
अपने पति के दर्जे पर
ना दूजे को स्थान दिया।।

वो एक सती सावित्री
जिसने यम से खींचे प्राण।
एक आज की नारी
जो ले जाती यम के द्वार।।
हे कलयुग की नारी तुम
अस्तित्व कैसे भूल गई।
पुरखों की मर्यादा से
तुम कैसे इतना दूर गई।।

क्यों भूल गई वो संस्कार
जिसमे जीने में मान हो।
क्यों भूल गई शृंगार
जिसमे हाथ में ना तलवार हो।।
हे मेरी माता बहनों
तुम संस्कृति के अब साथ चलो।
स्वयं को पहचानो
जिज़ाबाई जैसी मात बानो।

अरे वो भी नारी ही थी
जिसने छत्रपति तैयार किया।
वो हाड़ी वाली रानी
जिसने शीश थाल में सजा दिया।
वो पन्नाधाय जो
राजहित में पुत्र का बलिदान दिया।
नारी बनो वैसी
जिसने महाराणा प्रताप बना दिया।

क्यूँ लगी हो नशे में तुम
क्यों कच्चे वाले प्रेम करो।
तुम प्रेम यदि करना चाहो
तो मात सती सा प्रेम करो।।
कर्म यदि करना चाहो
तो सीते माँ सा कर्म करो।
जो साथ रहे वन में भी
ऐसे धर्म सा सत्कर्म करो।।

हे नारी बदलो ख़ुद को तुम
संस्कृति की भी लाज रखो।
संसार तुम्हारे हाथों में
अब मर्यादा का मान रखो।।
प्रेम का स्वरूप हो तुम
विश्व जगत की जननी हो।
अर्धांगिनी कहलाने वाली
तुम ही जीवन संगिनी हो।।

मेरी मंशा अंतिम बात से
कुछ सीख तुम्हें सिखाने की।
नतमस्तक है याचना
जरा सोचो इसे निभाने की।

ग़ैर मर्द को हे नारी
ना सोचो मित्र बनाने की।
पति की बाते टालकर
ना मानों सीख जमाने की।।
अरे गया द्वापर जब
द्रौपदी के सखा कृष्ण होते थे।
ये कलयुग है माता बहनों
यंहा मर्द सखा ना होते है ।।
यंहा मर्द सखा ना होते है ।।





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Ravindra kumar